ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रखे हुए हैं

ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रखे हुए हैं
आजकल सिदक़ ओ सफ़ा ताक़ पे रखे हुए हैं,

वो जो ख़ुद मारका ए इश्क़ में उतरे भी नहीं
शिकवा पस्पाई का उश्शाक़ पे रखे हुए हैं,

बाँध रखे है मोहब्बत ने अज़ल से हमको
सो तवज्जोह इसी मीसाक़ पे रखे हुए हैं,

दख़्ल आँखों का उलझने में बहुत है लेकिन
तोहमतें सब दिल ए मुश्ताक़ पे रखे हुए हैं,

जाने कब सिलसिला ए ख़ैर ओ ख़बर का हो ज़ुहूर
ध्यान हम अन्फ़ुस ओ आफ़ाक़ पे रखे हुए हैं,

देखिए कौन सा मफ़्हूम लिया जाएगा
बात कर के नज़र इतलाक़ पे रखे हुए हैं,

ताबिश ए शौक़ से अल्फ़ाज़ हैं रौशन गुलज़ार
या सितारे कफ़ ए औराक़ पे रखे हुए हैं..!!

~गुलज़ार बुख़ारी

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