ये तमन्ना थी कि तकमील ए तमन्ना करते
सामने तुझ को बिठा के हम तेरी पूजा करते,
कुछ न होता जो मोहब्बत में तो ऐसा करते
हम तेरे हुस्न से ईमान का सौदा करते,
सब नमाज़ें ही एक सज्दे में अदा हो जातीं
बेख़ुदी में जो दर ए यार पे सज्दा करते,
इश्क़ बख़्शा था तो फिर ऐसी नज़र की होती
दिल के आईने में जल्वा तेरा देखा करते,
सज्दा करने को अगर मिलता तेरा नक़्श ए क़दम
हरम और दैर में आ कर तुझे सज्दा करते,
काश इस तरह से तकमील ए इबादत होती
शौक़ ए सज्दा में क़दम यार के चूमा करते,
ऐ फ़ना यार का दीदार अगर हो जाए
जान क्या चीज़ है ईमान का सौदा करते..!!
~फ़ना बुलंदशहरी