थकी हुई मामता की क़ीमत लगा रहे हैं
अमीर बेटे दुआ की क़ीमत लगा रहे हैं,
मैं जिन को उँगली पकड़ के चलना सिखा चुका हूँ
वो आज मेरे असा की क़ीमत लगा रहे हैं,
मेरी ज़रूरत ने फ़न को नीलाम कर दिया है
तो लोग मेरी अना की क़ीमत लगा रहे हैं,
मैं आँधियों से मुसालहत कैसे कर सकूँगा
चराग़ मेरे हवा की क़ीमत लगा रहे हैं,
यहाँ पे ‘मेराज’ तेरे लफ़्ज़ों की आबरू क्या
ये लोग बाँग ए दरा की क़ीमत लगा रहे हैं..!!
~मेराज फ़ैज़ाबादी