मेरे थके हुए शानों से बोझ उतर तो गया…

मेरे थके हुए शानों से बोझ उतर तो गया
बहुत तवील था ये दिन मगर गुज़र तो गया,

लगा के दाव पे साँसों की आख़िरी पूँजी
वो मुतमइन है चलो हारने का डर तो गया,

कसी गुनाह की परछाइयाँ थीं चेहरे पर
समझ न पाया मगर आइने से डर तो गया,

ये और बात कि काँधों पे ले गए हैं उसे
किसी बहाने से दीवाना आज घर तो गया..!!

~मेराज फ़ैज़ाबादी

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