वो संगदिल तो फ़क़त देखने से टूट गए
ये देखने में हमारे पसीने छूट गए,
उन्हें हमारे सिवा क़ाफ़िले से कुछ न मिला
मगर लुटेरे हमारा भरम तो लूट गए,
तुम्हारी दीद का दरवाज़ा खटखटाया ज़रूर
मैं क्या करूँ कि निगाहों के हाथ टूट गए,
तुम्हारे दश्त से कुछ ख़ास हाथ आया नहीं
ज़रा से आबले लाए थे वो भी फूट गए,
न खाईं ठोकरें उस की गली के पत्थरों से
गुज़रने वालो तुम्हारे नसीब फूट गए..!!
~इब्राहीम अली ज़ीशान
करता है कोई अब भी पज़ीराई हमारी
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