ये किसका कर रहा है इंतज़ार आदमी
जब ख़ुद ही ला सकता है बहार आदमी,
मिलता नहीं मुफ़्त में कुछ भी यहाँ पर
फिर भी चाहता है चमत्कार आदमी,
दो पल के लिए ही तो जन्नत की चाह नहीं
फिर क्यूँ करता है बलात्कार आदमी,
सुना है इंसानों की बस्ती है यहां पर
फिर क्यूँ रखता है हाथों में हथियार आदमी ?
जलता रहे आशियाँ किसी का, हमें क्या
जब चिंगारी हो अपने घर की तब होता है शर्मशार आदमी,
लूट जाती है उसके भरोसे की दुनिया अक्सर
फिर भी खाता है धोखा बार-बार आदमी,
सम्भलते नहीं इससे अपने ख़ुद के मसले
फिर भी बहुत उम्दा है सलाहकार आदमी,
रखता होगा कुछ तो दुनिया से छुपाने को
ऐसे ही नहीं बनाता कोई दिवार आदमी,
देता है दगा अपनों को, दे किस्मत को कभी
इतना भी हुआ नहीं अभी होशियार आदमी,
छिपा तो लेता है एक सच को मगर
फिर बोलता है झूठ हजार आदमी,
ग़र पसीजता नहीं है दिल पीर पराई से
“साफिर” फिर कैसा है कलमकार आदमी..!!
~साफिर