वो जो हम में तुम में क़रार था…

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो,

वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेशतर वो करम कि था मेरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा तुम्हें याद हो कि न याद हो,

वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो,

कभी बैठे सब में जो रू ब रू तो इशारतों ही से गुफ़्तुगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो,

हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम ब दम
गिला ए मलामत ए अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो,

कोई बात ऐसी अगर हुई कि तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो कि न याद हो,

कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो कि न याद हो,

सुनो ज़िक्र है कई साल का कि किया एक आप ने वादा था
सो निबाहने का तो ज़िक्र क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो,

कहा मैं ने बात वो कोठे की मेरे दिल से साफ़ उतर गई
तो कहा कि जाने मेरी बला तुम्हें याद हो कि न याद हो,

वो बिगड़ना वस्ल की रात का वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा तुम्हें याद हो कि न याद हो,

जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बा वफ़ा
मैं वही हूँ मोमिन ए मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो..!!

~मोमिन ख़ाँ मोमिन

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