बहुत गुमान था मौसम शनास होने का
वही बहाना बना है उदास होने का,
बदन को काढ़ लिया ज़ख्म के गुलाबो से
तो शौक़ पूरा किया ख़ुश लिबास होने का,
फ़ज़ा महकने लगे रौशनी झलकने लगे
तो ये निशाँ है तेरे आस पास होने का,
गुलो के बीच वो चेहरा खिला तो हर तितली
तमाशा करने लगी बदहवास होने का,
उसे भी शौक़ था बेवजह दिल दुखाने का
सो हमने खेल रचाया उदास होने का,
नये सफ़र पे रवाना तो हम भी हो जाते
बस इंतज़ार था मौसम के रास होने का,
नज़र में खाक़ हुए हम भी जब से हमें
शर्फ़ मिला है तेरे रु शनास होने का..!!