अना से तर्क ए अना तक सफ़र किया जाए…

बहुत कठिन ही सही मगर किया जाए
अना से तर्क ए अना तक सफ़र किया जाए,

जब अपनी बात पे रहना है तुम्हे और हमें
तो फिर मुकालमा तो मुख़्तसर किया जाए,

तेरी जुदाई के दिन काँटे से बेहतर है
ज़माने भर के दुखो को बसर किया जाए,

है उससे तर्क ए ताअल्लुक़ का फ़ैसला ऐ दिल
फिर ये फ़ैसला तो बहुत सोच कर किया जाए,

गुज़ारा जाए कोई धूप में झुलसता दिन
फिर ऐसा हो कि ऐतराज़ मेरे रंग पर किया जाए,

चटख तो सकती है बुनियाद उसके घर की भी
वो जो ये चाहता है कि मुझे दरबदर किया जाए,

बज़ाहिर कमी तो आयेगी उनके वक़ार में भी
गर हिसाब गुज़रे हुए दिनों का कर दिया जाए..!!

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