उम्र कहते है जिसे साँसों की एक जंज़ीर है
चश्म ए बीना में हर के लम्हा नई तस्वीर है,
ज़िन्दगी इनआम की सूरत में एक ताज़ीर है
जो कभी देखा न था उस ख़्वाब की ताबीर है,
जो पस ए पर्दा है उसको चाहे जो कह लीजिए
पेश जो आए यहाँ, वही इन्सान की तक़दीर है,
कोई मंज़र यूँ नहीं जिसका कि पस मंज़र नहीं
ज़ात का इज़हार गोया ज़ात की तशहीर है,
रात खाएफ़ है कि तहलील सहर हो जाएगी
सुबह को ये फिक्र ला हक़ शाम दामन गीर है..!!