सोचा कि ख़ुद पे ज़रा सी इनायत कर लूँ
ऐ ज़िन्दगी तुझसे वो पहली सी मुहब्बत कर लूँ,
सुनाऊँ अब किस किस को मैं सबब ए दिल ए वीरान
आईना सामने रख कर अपनी ही शिकायत कर लूँ,
तू शाह है तो मेरे फ़कीरी की गैरत ना छेड़
कही ऐसा न हो तुझसे भी अदावत कर लूँ,
एक मेरी अना के सिवा कौन मेरे साथ रहा
जान देकर फिर क्यूँ न उसकी हिफाज़त कर लूँ,
झुक जाएँ सर ए तस्लीम ए ख़म अमीर ए शहर के आगे
मैं भी कैसे इस फ़िक्र की हिमायत कर लूँ ?
पहचान मेरी बन गया है तू वरना
दिल करता है सरेआम तुझसे भी बग़ावत कर लूँ..!!