तू मेरी रूह का हिस्सा है, तू ही जान मेरी

जब भी सोचा कभी अपना तो हमारा सोचा

क्या मिला और हुआ कितना ख़सारा सोचा ?
बाद मुद्दत के यही क़िस्सा दोबारा सोचा,

रात भर देर तलक नींद न आई मुझको
रात भर देर तलक तुझको ही यारा सोचा,

मैं तो गुज़र जाऊँगा तुझसे जुदा हो कर
कैसे होगा मेरे बिन तेरा गुज़ारा सोचा ?

अब मेरी सोच भी हैरान है, कैसे मैंने
इतनी फ़ुर्सत से तुझे सारे का सारा सोचा,

ये भी मुमकिन है कि ज़न्नत में ही मिले शायद
जैसा घर मैंने कभी अपना तुम्हारा सोचा,

आज आ जा कि तुझे अश’आर में अपने लिख लूँ
तू भी तो देखे कि तुझे कितना प्यारा सोचा,

तू मेरी रूह का हिस्सा है, तू ही जान मेरी
जब भी सोचा कभी अपना तो हमारा सोचा,

रो दिया आज तो दरियाँ भी सितम पर अपने
मरने वालो ने ऐसी हसरत से किनारा सोचा,

हम तुझे सोच के फिर और किसे सोचेंगे ?
बस यही सोच कर फिर तुझको दोबारा सोचा..!!

2 thoughts on “तू मेरी रूह का हिस्सा है, तू ही जान मेरी”

  1. वाह!👋🏻👋🏻👋🏻
    क्या बात है……… 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

    बहुत उम्दा ज़बरदस्त 👍🏻

    Reply

Leave a Reply

error: Content is protected !!
%d