क़र्ज़ जाँ का उतारने के लिए मैं जीया ख़ुद को मारने के लिए…

क़र्ज़  जाँ का उतारने के लिए
मैं जीया ख़ुद को मारने के लिए,
 
मुझे जलना पड़ा दीये की तरह
शब की ज़ुल्फे सँवारने के लिए,
 
देख ! ख़ुद को मिटा दिया मैंने
नक्श तेरे उभारने के लिए,
 
मैंने दहलीज पर धरी आँखे
तुझको दिल में उतारने के लिए,
 
उसने तोहफ़ा दिया उदासी का
वक़्त ख़ुशी ख़ुशी गुज़ारने के लिए,
 
फिर भी इस मुहब्बत के खेल में
मैं हूँ तैयार उससे हारने के लिए..!!

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