मेरे ख़ुदा मैं अपने ख़यालों को क्या करूँ..

मेरे ख़ुदा मैं अपने ख़यालों को क्या करूँ
अंधों के इस नगर में उजालों को क्या करूँ ?

चलना ही है मुझे मेरी मंज़िल है मीलों दूर
मुश्किल ये है कि पाँवों के छालों को क्या करूँ ?

दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते
मस्जिद का क्या करूँ मैं शिवालों का क्या करूँ ?

मैं जानता हूँ सोचना अब एक जुर्म है
लेकिन मैं दिल में उठते सवालों को क्या करूँ ?

जब दोस्तों की दोस्ती है सामने मेरे
दुनिया में दुश्मनी की मिसालों को क्या करूँ ??

-राजेश रेड्डी

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