उजड़े हुए हड़प्पा के आसार की तरह

उजड़े हुए हड़प्पा के आसार की तरह
ज़िन्दा हैं लोग वक़्त की रफ़्तार की तरह,

क्या रहना ऐसे शहर में मजबूरियों के साथ
बिकते हैं लोग शाम के अख़बार की तरह,

कातिल बिराजमान हैं मुन्सफ़ के साये में
मक़तूल फिर रहे हैं अज़ादार की तरह,

वायदे ज़रुरतों की नज़र कर दिए गए
रिश्ते हैं सारे रेत की दीवार की तरह,

मोहसिन मेरे वज़ूद को संगसार करते वक़्त
शामिल था सारा शहर एक त्यौहार की तरह..!!

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