तहरीर से वर्ना मेरी क्या हो नहीं सकता
एक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता,
आँखों में ख़यालात में साँसों में बसा है
चाहे भी तो मुझ से वो जुदा हो नहीं सकता,
जीना है तो ये जब्र भी सहना ही पड़ेगा
क़तरा हूँ समुंदर से ख़फ़ा हो नहीं सकता,
गुमराह किए होंगे कई फूल से जज़्बे
ऐसे तो कोई राहनुमा हो नहीं सकता,
क़द मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला है
जो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता,
ऐ प्यार तेरे हिस्से में आया तेरी क़िस्मत
वो दर्द जो चेहरों से अदा हो नहीं सकता..!!
~वसीम बरेलवी