चाँद पर बस्तियाँ तो बसा लोगे…

चाँद पर बस्तियाँ तो बसा लोगे
मगर चाँदनी कहाँ से लाओगे ?

सलब कर लीं समाअतें सबकी
किस को अब दास्ताँ सुनाओगे ?

छीन ली है शहर भर की गोयाई
फिर अब सदाएं कहाँ से पाओगे ?

सब की आँखें निकाल दी तुमने
अब ये आँखें किसे दिखाओगे ?

हर सू बोये नफ़रतों के कीकर
तो फिर गुलाब कहाँ से पाओगे ?

बे तहाशा ख़ुदा तो बन बैठें हैं
सोचो इतने सज़्दे कहाँ से लाओगे ??

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