मुक़द्दर ने कहाँ कोई नया पैग़ाम लिखा है
मुक़द्दर ने कहाँ कोई नया पैग़ाम लिखा है अज़ल ही से वरक़ पर दिल के …
मुक़द्दर ने कहाँ कोई नया पैग़ाम लिखा है अज़ल ही से वरक़ पर दिल के …
वो सर फिरी हवा थी सँभलना पड़ा मुझे मैं आख़िरी चराग़ था जलना पड़ा मुझे, …
न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़ है कुछ भी हम में हमारा कहाँ …
आहिस्ता चल ऐ ज़िन्दगी अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाक़ी है, कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है …
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो मैं अपने साए से कल रात डर गया …
बीच सफ़र में छोड़ गया हमसफ़र हमसफ़र ना रहा इतना दर्द दिया हमदर्द ने कि …
तू अपनी खूबियाँ ढूँढ कमियां निकालने के लिए लोग हैं, अगर रखना ही है कदम …
ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ लिखता है ? है ये दर्द सबको फिर …