एक मय्यत ज़मीं तले उतरी एक मय्यत नहीं उठाई गई…
उसमें कोई रईस मुज़रिम था जो कहानी नहीं सुनाई गई, एक मय्यत ज़मीं तले उतरी …
उसमें कोई रईस मुज़रिम था जो कहानी नहीं सुनाई गई, एक मय्यत ज़मीं तले उतरी …
तुम्हारी सोच, तुम्हारे गुमाँ से बाहर हम खड़े हुए है सफ ए दोस्तां से बाहर …
पूछो अगर तो करते है इन्कार सब के सब सच ये कि है हयात से …
कहीं क़बा तो कहीं आस्तीं बिछाते हुए मैं मर गया हूँ वफादारियाँ निभाते हुए, अज़ीब …
वफ़ादारी पे दे दी जान मगर ग़द्दारी नहीं आई हमारे खून में अब तक ये …
वो कौन है जो गम का मज़ा जानते नहीं बस दूसरों के दर्द को ही …
आशना होते हुए भी आशना कोई नहीं जानते सब है मुझे, पहचानता कोई नहीं, तन्हा …
कितने ही पेड़ ख़ौफ़ ए ख़िज़ाँ से उजड़ गए कुछ बर्ग ए सब्ज़ वक़्त से …
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और बढ़ जाएगी शायद मेरी तन्हाई ज़रा और, …
जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते बच्चे लेकिन सोए हुए …