कौन मुन्सफ़, कहाँ इंसाफ़, किधर का दस्तूर
कौन मुन्सफ़, कहाँ इंसाफ़, किधर का दस्तूर अब ये मिज़ान सजावट के सिवा कुछ भी …
कौन मुन्सफ़, कहाँ इंसाफ़, किधर का दस्तूर अब ये मिज़ान सजावट के सिवा कुछ भी …
वतन से उल्फ़त है जुर्म अपना ये जुर्म ता ज़िन्दगी करेंगे है किस की गर्दन …
सरहदों पर है अपने जवानों का गम और बस्ती में जलते मकानों का गम, फिर …
वतन नसीब कहाँ अपनी क़िस्मतें होंगी जहाँ भी जाएँगे हम साथ हिजरतें होंगी, कभी तो …
बड़ा बेशर्म ज़ालिम है, बड़ी बेहिस फ़ितरत है उसको कहाँ पता हया क्या ? क्या …
पानी के उतरने में अभी वक़्त लगेगा हालात सँवरने में अभी वक़्त लगेगा, मच्छर से, …
ख़ुद हो गाफ़िल तो अक्सर ये भी भूल जाते है कि ख़ुदा सब देख रहा …
रंगों की आड़ में खुनी खेल, ये इंसानियत क्या जाने ? हरा, भगवा में डूबे …
खून में डूबी सियासत नहीं देखी जाती हमसे अब देश की हालत नहीं देखी जाती, …