वतन से उल्फ़त है जुर्म अपना…

वतन से उल्फ़त है जुर्म अपना ये जुर्म ता ज़िन्दगी करेंगे
है किस की गर्दन पे खून ए ना हक़ फ़ैसला लोग करेंगे,

वतनपरस्तों को कह रहे हो वतन का दुश्मन डरो ख़ुदा से
जो आज हम से खता हुई है यही खता कल सभी करेंगे,

वज़ीफ़ा ख्वारों से क्या शिकायत, हज़ार दें शाह को दुआएँ
मदार जिनका है नौकरी पर वो लोग तो नौकरी करेंगे,

लिए जो फिरते हैं तमगा ए फन रहे है जो हम ख्याल ए रहजन
हमारी आज़ादियों के दुश्मन हमारी क्या रहबरी करेंगे ?

ना खौफ़ ए ज़िन्दां न दार का गम ये बात दोहरा रहे हैं फिर हम
कि आख़िरी फ़ैसला वो होगा जो सवा सौ करोड़ लोग करेंगे,

सितम गरों के आगे न सर झुका है न झुक सकेगा
शआर ए सादिक पे हम हैं नाज़ां जो कह रहे हैं वही करेंगे..!!

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