कभी याद आऊँ तो पूछना ज़रा अपनी फ़ुर्सत ए शाम से…
कभी याद आऊँ तो पूछना ज़रा अपनी फ़ुर्सत ए शाम से किसे इश्क़ था तेरी …
कभी याद आऊँ तो पूछना ज़रा अपनी फ़ुर्सत ए शाम से किसे इश्क़ था तेरी …
जान मेरी जान कोई और है बात मेरी मान कोई और है, हो गया हूँ …
सुना है इस मुहब्बत में बहुत नुक़सान होता है, महकता झूमता जीवन गमो के नाम …
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना तअ’ज्जुब से वो बोला यूँ भी …
चलो सागर ए इश्क़ का किनारा ढूँढे डूबने वालो के लिए सहारा ढूँढे, यूँ भी …
कभी लफ्ज़ भूल जाऊँ कभी बात भूल जाऊँ तुझे इस क़दर चाहूँ कि अपनी ज़ात …
जो तेरे प्यार के दरियाँ कशीद हो जाएँ मेरी हयात के मंज़र ज़दीद हो जाएँ, …
मुलाकातें हमारी बेइरादा क्यों नहीं होतीं ? मुहब्बत की गुजर कहीं कुशादा क्यों नहीं होतीं …
मेरे दिल के अरमां रहे रात जलते रहे सब करवट पे करवट बदलते, यूँ हारी …