मुलाकातें हमारी बेइरादा क्यों नहीं होतीं ?

मुलाकातें हमारी बेइरादा क्यों नहीं होतीं ?
मुहब्बत की गुजर कहीं कुशादा क्यों नहीं होतीं

हमारे दरमियान ये अजनबियत का धुवां क्यों है
हमारी चाहतें हद से ज्यादा क्यों नहीं होती ?

मेरे जज़्बात की खुशबू उतरती क्यों नहीं तुम में ?
तेरे दिल की सभी राहें कुशादा क्यों नहीं होती ?

खुशी की चंद बूंदे जिस्म को गीला कर तो देती हैं
मयस्सर तो रहती लेकिन ज्यादा क्यों नहीं होतीं ?

तेरे नज़दीक रहके भी ये दूरी का गुमां कैसा,
तेरी बाहें मेरी खातिर कुशादा क्यों नहीं होतीं ?

नाज़ ओ अदा हमेशा ही ये दिखलाती हैं राहो में
ये हसीन सूरत वाली अक्सर सादा क्यों नहीं होती..??

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