मुझे तन्हाई अपनी अब तुम्हारे नाम करना है…
मुझे तन्हाई अपनी अब तुम्हारे नाम करना है बहुत मैं थक चुका हूँ अब मुझे …
मुझे तन्हाई अपनी अब तुम्हारे नाम करना है बहुत मैं थक चुका हूँ अब मुझे …
कभी याद आऊँ तो पूछना ज़रा अपनी फ़ुर्सत ए शाम से किसे इश्क़ था तेरी …
सब के होते हुए लगता है कि घर ख़ाली है ये तकल्लुफ़ है कि जज़्बात …
खिड़कियाँ खोल रहा था कि हवा आएगी क्या ख़बर थी कि चिरागों को निगल जाएगी, …
मुलाकातें हमारी बेइरादा क्यों नहीं होतीं ? मुहब्बत की गुजर कहीं कुशादा क्यों नहीं होतीं …
मेरे दिल के अरमां रहे रात जलते रहे सब करवट पे करवट बदलते, यूँ हारी …
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम रहा ये वहम कि हम हैं सो …
वो माहिर थी फन ए अय्यारी मेंअपने इश्क़ में मुझे बीमार कर गई, अनाड़ी सी …