ये है मयकदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है…
ये है मयकदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है ये हरम नहीं …
ये है मयकदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है ये हरम नहीं …
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम रहा ये वहम कि हम हैं सो …
किसी से भी नहीं हम सब्र की तलक़ीन लेते है हमें मिलती नहीं जो चीज …
आँखे बन जाती है सावन की घटा शाम के बाद लौट जाता है अगर कोई …
कोई हसीन मंज़र आँखों से जब ओझल हो जाएगा मुझको पागल कहने वाला ख़ुद ही …
तभी तो मैं मुहब्बत का कही हवालाती नहीं होता जहाँ अपने सिवा कोई शख्स मुलाक़ाती …
मैं रातें जाग कर अक्सर वो यादें झाँक कर अक्सर निशाँ जो छोड़ देती है …
मेरे दोस्त, ऐ मेरे प्यारे अभी बात है अधूरी अभी चाँदनी है बाक़ी अभी रात …
चाँद यूँ कुछ देर को आते हो चले जाते हो मेरी नज़रों से छुप कर …
एक हकीकी ख़्वाब हुआ तेरा साथ सराब हुआ, सब अंदेशे कमाल थे मुक़म्मल हुए, पैकर …