किसी से भी नहीं हम सब्र की तलक़ीन लेते है…

किसी से भी नहीं हम सब्र की तलक़ीन लेते है
हमें मिलती नहीं जो चीज उसको छीन लेते है,

बुढ़ापा आ गया लेकिन नहीं बदला मिजाज़ उनका
अभी तक कपड़े वो अपने लिए रंगीन लेते है,

फ़कीरो को कभी दर से न ख़ाली लौटने देना
दुआएँ देते है वो, खैरात जब मिस्कीन लेते है,

वो सारे लोग रंज़ ओ गम से पा जाते है आज़ादी
जो सुबह ओ शाम वरद सुरह यासिन लेते है,

हैरत है क्यूँ अहल ए फिलिस्तीन की सुजाअत पर
यज़ीदो से सदा लोहा तो अहल ए दीन लेते है..!!

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