जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई…
जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई उन की निगाह और भी मासूम हो गई, …
जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई उन की निगाह और भी मासूम हो गई, …
ज़िंदगी का हर नफ़स मम्नून है तदबीर का वाइज़ो धोखा न दो इंसान को तक़दीर …
जाने क्यूँ अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते जाने क्यूँ अब मस्त मौला मिजाज़ …
मुफ़लिसी में दिन बिताते है यहाँ फिर भी सपने हम सजाते है यहाँ, मज़हबी बातें …
झूठी बाते झूठे लोग, सहते रहेंगे सच्चे लोग हरियाली पर बोलेंगे, सावन के सब अँधे …
शाख़ से फूल से क्या उसका पता पूछती है या फिर इस दश्त में कुछ …
मैंने तो बहुत देखे अपने भी पराये भी कुछ ज़िन्दगी भी देखी कुछ मौत के …
फ़तह की सुन के ख़बर, प्यार जताने आए रूठे हुए थे हमसे यार रिश्तेदार मनाने …
बसा बसाया शहर अब बंजर लग रहा है चारो ओर उदासियो का मंज़र लग रहा …
रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता …