शाख़ से फूल से क्या उस का पता पूछती है…

शाख़ से फूल से क्या उसका पता पूछती है
या फिर इस दश्त में कुछ और हवा पूछती है,

मैं तो ज़ख़्मों को ख़ुदा से भी छुपाना चाहूँ
किस लिए हाल मेरा ख़ल्क़ ए ख़ुदा पूछती है,

चश्म ए इंकार में इक़रार भी हो सकता था
छेड़ने को मुझे फिर मेरी अना पूछती है,

तेज़ आँधी को न फ़ुर्सत है न ये शौक़ ए फ़ुज़ूल
हाल ग़ुंचों का मोहब्बत से सबा पूछती है,

किसी सहरा से गुज़रता है कोई नाक़ा सवार
और मिज़ाज उसका हवा सब से जुदा पूछती है..!!

~असद बदायुनी

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