मेरी एक छोटी सी कोशिश तुम्हे पाने के लिए
बन गई है मसअला सारे ज़माने के लिए,
रेत मेरी उम्र, मैं बच्चा, निराले मेरे खेल
मैंने दीवारे उठाई ही है गिराने के लिए,
वक़्त होंठो से मेरे वो भी खुरच के ले गया
एक तबस्सुम जो था दुनियाँ को दिखाने के लिए,
आसमां ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग से
इतनी बारिश, महज़ एक शोले को बुझाने के लिए,
छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद
मैं नए घर में बहुत रोया पुराने के लिए,
देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना
तजरुबे आये थे हमें संज़ीदा बनाने के लिए,
मैं ज़फर ता ज़िन्दगी बिकता रहा परदेस में
अपनी घर वाली को एक कंगन दिलाने के लिए..!!
~ज़फर गोरखपुरी