मज्लिस ए ग़म, न कोई बज़्म ए तरब, क्या करते

मज्लिस ए ग़म, न कोई बज़्म ए तरब, क्या करते
घर ही जा सकते थे आवारा ए शब, क्या करते ?

ये तो अच्छा क्या तन्हाई की आदत रखी
तब उसे छोड़ दिया होता तो अब क्या करते ?

रौशनी, रंग, महक, ताइर ए ख़ुश लहन, सबा
तू न आता जो चमन में तो ये सब क्या करते ?

दिल का ग़म दिल में लिए लौट गए हम चुप चाप
कोई सुनता ही न था शोर ओ शग़ब क्या करते ?

बात करने में हमें कौन सी दुश्वारी थी
उस की आँखों से तख़ातुब था सो लब क्या करते ?

कुछ क्या होता तो फिर ज़ो’म भी अच्छा लगता
हम ज़ियाँकार थे, एलान ए नसब क्या करते ?

देख कर तुझ को सिरहाने तेरे बीमार ए जुनूँ
जाँ ब लब थे, सो हुए आह ब लब क्या करते ?

तू ने दीवानों से मुँह मोड़ लिया, ठीक क्या
इन का कुछ ठीक नहीं था कि ये कब क्या करते ?

जो सुख़न साज़ चुराते हैं मेरा तर्ज़ ए सुख़न
उन का अपना न कोई तौर, न ढब, क्या करते ?

यही होना था जो इरफ़ान तेरे साथ हुआ
मुंकिर ए मीर भला तेरा अदब क्या करते..??

~इरफ़ान सत्तार

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

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