किसी तरंग किसी सर ख़ुशी में रहता था…

किसी तरंग किसी सर ख़ुशी में रहता था
ये कल की बात है दिल ज़िन्दगी में रहता था,

कि जैसे चाँद के चेहरे पे आफ़ताब की लौ
खुला कि मैं भी किसी रौशनी में रहता था,

सरशत ए आदम खाक़ी ज़रा नहीं बदली
फ़लक पे पहुँचा मगर गार ही में रहता था,

कहा ये किसी ने कि रहता था मैं ज़माने में
हुज़ूम ए दर्द गम अ बेकसी में रहता था,

कलाम करता था क़ौस ए क़ुज़ह के रंगों में
वो एक ख्याल था और शायरी में रहता था,

गुलो पे डोलता फिरता था ओस की सूरत
सदा की लहर था और नगमगी में रहता था,

नहीं थी हुस्न ए नज़र की भी कुछ उसे परवाह
वो एक ऐसी अज़ब दिलकशी में रहता था,

वहाँ पे अब भी सितारे तवाफ़ करते है
वो जिस मकान में जिस भी गली में रहता था,

बस एक शाम बड़ी ख़ामोशी से टूट गया
हमें जो मान तेरी दोस्ती में रहता था,

खिला जो फूल तो बर्बाद हो गया अब तो
तिलस्म रंग मगर गुंचगी में रहता था..!!

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