ज़िन्दगी पाँव न धर ज़ानिब ए अंज़ाम अभी…

ज़िन्दगी पाँव न धर ज़ानिब ए अंज़ाम अभी
मेरे ज़िम्मे है अधूरे से कई काम अभी,

अभी ताज़ा है बहुत घाव बिछड़ जाने का
घेर लेती है तेरी याद सर ए शाम अभी,

एक नज़र और इधर देख मसीहा मेरे
तेरे बीमार को आया नहीं आराम अभी,

रात आई है तो क्या, तुम तो नहीं आये हो
मेरी क़िस्मत में कहाँ लिखा है आराम अभी,

जान देने में करूँ देर, ये मुमकिन है कहाँ
मुझ तक आया है मेरी जान तेरा पैगाम अभी,

तायर ए दिल के ज़रा पर तो निकल लेने दो
इस परिंदे को भी आना है तय दाम अभी,

तोड़ सकता है मेरा दिल ये ज़माना कैसे
मेरे सीने में धड़कता है तेरा नाम अभी,

मेरे हाथो में है मौज़ूद तेरे हाथ का लम्स
दिल में बरपा है उसी शाम का कोहराम अभी,

मैं तेरा हुस्न ए सुखन में ढालूँ कैसे
मेरे अशआर बने है कहाँ इल्हाम अभी,

मेरी नज़रे करे कैसे तेरे चेहरे का तवाफ़
मेरी आँखों ने तो बाँधे नहीं एहराम अभी,

याद के अब्र से आँखे मेरी भीगी है अभी
एक धुंध लगा सा है भीगी तो नहीं शाम अभी..!!

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