मैं ने यूँ इन सर्द लबों को रखा…

मैं ने यूँ इन सर्द लबों को रखा उन रुख़्सारों पर
जैसे कोई भूल से रख दे फूलों को अंगारों पर,

छुप गया ईद का चाँद निकल कर देर हुई पर जाने क्यों
नज़रें अब तक टिकी हुई हैं मस्जिद के मीनारों पर,

आती जाती साँसों पर वो दिल के तड़पने का आलम
जैसे कोई नाच रहा हो दो धारी तलवारों पर,

बरसों बाद जो घर में लौटा देख के आँखें भर आईं
अब तक उन का नाम लिखा था घर की सब दीवारों पर,

मौसम ए गुल फिर आया शायद फिर एक वहशत जाग उठी
वो देखो सब्ज़ा उग आया ज़िंदाँ की दीवारों पर,

पैरों में बाँधे बैठे हैं हम ख़ुद ही ज़ंजीर मआश
और यारों ने जस्त लगा दी देखो चाँद सितारों पर..!!

~शायर जमाली

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