लेता हूँ उस का नाम भी आह ओ बुका के साथ
कितना हसीन रिश्ता है मेरा ख़ुदा के साथ,
उस की क़ुबूलियत में कोई शक नहीं रहा
भेजे हैं हम ने अश्क भी अब के दुआ के साथ,
बुझते हुए चराग़ को हाथों में ले लिया
इस बार बाज़ी जीत ली मैं ने हवा के साथ,
आ के बचा ले मौत मुझे ज़िंदगी से तू
कितनी गुज़ारूँ और मैं इस बेवफ़ा के साथ,
तूफ़ाँ में मुझ को बनना पड़ा उस के दस्त ओ पा
‘साहिल’ वगर्ना बनती न थी ना ख़ुदा के साथ..!!
~अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी