कुछ ख़ुद भी थे अफ़सुर्दा से
कुछ लोग भी हमसे रूठ गए,
कुछ ख़ुद भी ज़ख्म के आदी थे
कुछ शीशे हाथ से टूट गए,
कुछ ख़ुद भी थे हस्सास बहुत
कुछ अपने मुक़द्दर रूठ गए,
कुछ ख़ुद भी इतने मोहतात न थे
कुछ लोग भी हमको लूट गए,
कुछ तल्ख़ हकीक़तें थी इतनी
कि ख़्वाब ही सारे टूट गए..!!
~दानिश मलिक