काम इस दिल की तबाही से लिया क्या जाए
सोचता हूँ कि ख़राबे में किया क्या जाए ?
ऐ किसी याद की खिड़की से गुज़रते मौसम
क्या दिया जाए तुझे और लिया क्या जाए ?
इस गिरेबाँ को किसी मौज में आ कर मैंने
चाक अगर कर ही लिया है तो सिया क्या जाए ?
तेरी ख्वाहिश कि किसी आखिरी दरवाज़े पर
मरना मुमकिन ना रहे गर तो ज़िया क्या जाए ?
~मक़सूद वफ़ा