कुछ इस अदा से ग़म ए ज़िंदगी के साथ चले

कुछ इस अदा से ग़म ए ज़िंदगी के साथ चले
कि जैसे कोई किसी अजनबी के साथ चले,

क़दम क़दम ग़म ए कौन ओ मकाँ भुलाए हुए
जो मेरे साथ चले वो ख़ुशी के साथ चले,

ख़िरद को राह रवी का शु’ऊर आ जाए
ज़रा सी दूर वो दीवानगी के साथ चले,

जो हमसफ़र नहीं कोई तो अपना साया है
ये आसरा तो है जैसे किसी के साथ चले,

सुरूर ओ कैफ़ की राहें बहुत ही नाज़ुक हैं
उन्हीं का ज़िक्र ज़रा मयकशी के साथ चले,

रह ए हयात में वो तज्रबे हुए हैं कि बस
हर एक सोच समझ कर किसी के साथ चले,

ख़याल अपना तो ये है कि दास्तान ए हयात
रईस कुछ भी हो ज़िंदादिली के साथ चले..!!

~रईस रामपुरी

आराइश ए बहार का सामाँ कहाँ से आए

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