कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहज़े में
अज़ब तरह की घुटन है हवा के लहज़े में,
ये वक़्त किसकी रौनत पे खाक़ डाल गया ?
ये कौन बोल रहा था ख़ुदा के लहज़े में,
न जाने खल्क ख़ुदा कौन से अज़ाब में है
हवाएँ चीख पड़ी इल्तज़ा के लहज़े में,
खुला फ़रेब मुहब्बत दिखाई देता है
अज़ब कमाल है उस बेवफ़ा के लहज़े में,
यही है मसलहत ज़ब्र एहतियात तो फिर
हम अपना हाल कहेंगे छुपा के लहज़े में..!!