कल तक ये फूल रूह ए रवाँ थे बहार के
तुम ने अभी अभी जिन्हें फेंका उतार के,
देखा तो ज़र्रे ज़र्रे में जल्वे हैं यार के
पछता रहा हूँ दैर ओ हरम में गुज़ार के,
इस का तो ग़म नहीं कि नशेमन उजड़ गया
इस का क़लक़ रहेगा कि दिन थे बहार के,
ग़म से कभी गुरेज़ कभी साज़ बाज़ है
हालात क्या बताऊँ दिल ए बेक़रार के,
आए हैं मुद्दतों में जो दम भर के वास्ते
हालात पूछते हैं शब ए इंतिज़ार के,
क़ुर्बान जाऊँ हुस्न ए तसव्वुर के ऐ रईस
पेश ए नज़र ख़िज़ाँ में हैं ख़ाके बहार के..!!
~रईस रामपुरी
सब को मा’लूम है ये बात कहाँ
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