मैंने तुम्हे कितना सोचा ज़रीन कभी सोचा तुमने..

इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमने
तुझसे क्या है मेरा नाता कभी सोचा तुमने ?

हाँ मैं तन्हा हूँ ये इक़रार भी करता हूँ
मगर किसने किया है तन्हा कभी सोचा तुमने ?

ये अलग बात है कि जताया नहीं मैंने तुझको
वरना कितना तुझको है चाहा कभी सोचा तुमने ?

तुझे आवाज़ लिखा, फूल लिखा, प्यार लिखा
मैंने क्या क्या तुझे लिखा कभी सोचा तुमने ?

मुतमअईन हूँ तुझे लफ्ज़ो की हरारत दे कर
मैंने तुम्हे कितना सोचा ज़रीन कभी सोचा तुमने ??

3 thoughts on “मैंने तुम्हे कितना सोचा ज़रीन कभी सोचा तुमने..”

  1. हमें सोचने की फुरसत कहाँ
    हम तो तेरी चाहत की तफ़सीर लिखते है
    पेश करतें है तुम्हेँ हर्फ़ ए अक़िदत
    बस तुम्हेँ दिल की ताबीर लिखते है..!!

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