कहानी दर्द ओ गम की ज़िन्दगी से क्या कहता ?
सबब ए रंज़ ओ गम जो है उसी से क्या कहता ?
गिला तो मुझ को भी करना था प्यास का लेकिन
जो ख़ुद ही सूख गई उस नदी से क्या कहता ?
जब मेरे अपने ही मुझ को समझ न पाए कभी
तो मैं अपना हाल किसी अज़नबी से क्या कहता ?
शब ए हिज़्र के अंधेरो ने मुझ को बहुत सताया है
भला बात शब ए वस्ल की चाँदनी से क्या कहता ?
तमाम शहर में फ़रेब और झूठ का राज था शायद
मैं अपने गम की हकीक़त किसी से क्या कहता ?