जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला
खाना गर हम उनको खिलाएँ तो ईद है,
पानी नहीं नसीब है कितनो को देखिए
प्यासे लबो की प्यास बुझाएँ तो ईद है,
जिनके लबो की छीन ली हालात ने हँसी
मुस्कान उन लबो पे सजाएँ तो ईद है,
वक़्त ने कितनो को कर दिया है बे मकीं
प्यार से मकाँ उनका बनाएँ तो ईद है,
बेरहम ज़माने ने दिए ज़ख्म जिन्हें गहरे
मरहम उनके ज़ख्मो पे लगाएँ तो ईद है..!!