जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई
उन की निगाह और भी मासूम हो गई,
हालात ने किसी से जुदा कर दिया मुझे
अब ज़िंदगी से ज़िंदगी महरूम हो गई,
क़ल्ब ओ ज़मीर बेहिस ओ बेजान हो गए
दुनिया ख़ुलूस ओ दर्द से महरूम हो गई,
उन की नज़र के कोई इशारे न पा सका
मेरे जुनूँ की चारों तरफ़ धूम हो गई,
कुछ इस तरह से वक़्त ने लीं करवटें ‘असद’
हँसती हुई निगाह भी मग़्मूम हो गई..!!
~असद भोपाली