इस बार तो ग़ुरूर ए हुनर भी निकल गया
बच कर वो मुझ से बार ए दिगर भी निकल गया,
इतना तेरा विसाल तो चाहा न था कभी
दिल से तेरी जुदाई का डर भी निकल गया,
हम राह के तअय्युन ए जाँ काह में रहे
इस कश्मकश में वक़्त ए सफ़र भी निकल गया,
मक़्सूद सिर्फ़ ढूँढना कब था तुझे सो मैं
जिस सम्त तू नहीं था उधर भी निकल गया,
कहता न था मियाना रवी है बुरी जमाल
सहरा के साथ हाथ से घर भी निकल गया..!!
~जमाल एहसानी