हर गाम पर थे शम्स ओ क़मर उस दयार में

हर गाम पर थे शम्स ओ क़मर उस दयार में
कितने हसीं थे शाम ओ सहर उस दयार में,

वो बाग़ वो बहार वो दरिया वो सब्ज़ा ज़ार
नश्शों से खेलती थी नज़र उस दयार में,

आसान था सफ़र कि हर एक रहगुज़ार पर
मिलते थे सायादार शजर उस दयार में,

हर चंद थी वहाँ भी ख़िज़ाँ की उदास धूप
दिल पर नहीं था ग़म का असर उस दयार में,

महसूस हो रहा था सितारे हैं गर्द ए राह
हम थे हज़ार ख़ाक बसर उस दयार में,

जालिब यहाँ तो बात गरेबाँ तक आ गई
रखते थे सिर्फ़ चाक जिगर उस दयार में..!!

~हबीब जालिब

घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी

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