हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे
कि हमको दस्त ए ज़माना से ज़ख़्मकारी लगे,
उदासियाँ हों मुसलसल तो दिल नहीं रोता
कभी कभी हो तो ये कैफ़ियत भी प्यारी लगे,
बज़ाहिर एक ही शब है फ़िराक़ ए यार मगर
कोई गुज़ारने बैठे तो उम्र सारी लगे,
इलाज इस दिल ए दर्द आश्ना का क्या कीजे
कि तीर बन के जिसे हर्फ़ ए ग़मगुसारी लगे,
हमारे पास भी बैठो बस इतना चाहते हैं
हमारे साथ तबीअत अगर तुम्हारी लगे,
फ़राज़ तेरे जुनूँ का ख़याल है वर्ना
ये क्या ज़रूर वो सूरत सभी को प्यारी लगे..!!
~अहमद फ़राज़