हम प्यास के मारों का इस तरह गुज़ारा है

हम प्यास के मारों का इस तरह गुज़ारा है
आँखों में नदी लेकिन हाथो में किनारा है,

दो चार क़दम चल कर दो चार घड़ी रुकना
मंज़िल भी तुम्हारी है रस्ता भी तुम्हारा है,

पलकों के नशेमन से होंठों के गुलिस्ताँ तक
कुछ हुस्न तुम्हारा है कुछ इश्क़ हमारा है,

फूलों के महकने का कोई तो सबब होगा
या ज़ुल्फ़ परेशाँ है या लब का इशारा है,

बर्फ़ाब सी दुनियाँ में बस इश्क़ को थामे रख
ये आग का दरियाँ ही तिनके का सहारा है,

ऐ पीर ए मुगाँ तेरे मयखाने में तो हम ने
एक मय ही नहीं पी है जीवन भी गुज़ारा है,

ये शय जो शब ए हिज्राँ जलती है न बुझती है
अब आ के तुम्ही देखो जुगनू है कि तारा है..!!

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