फ़सुर्दगी का मुदावा करें तो कैसे करें
वो लोग जो तेरे क़ुर्ब ए जमाल से भी डरें,
एक ऐसी राह पे डाला है तेरे ग़म ने कि हम
किसी भी शक्ल को देखें तो रुक के आह भरें,
ये क्या कि बेसबब आए क़ज़ा जवानी में
ये क्यूँ न हो कि तुम्हारी किसी अदा पे मरें ?
शब ए अलम के भी होते हैं कुछ न कुछ आदाब
तड़पने वाले सहर तक तो इंतिज़ार करें,
उस एक बात के बा’द अब हज़ार बात करो
ये दिल के ज़ख़्म हैं यारो भरें भरें न भरें !
सुबूत ए इश्क़ की ये भी तो एक सूरत है
कि जिस से प्यार करें उस पे तोहमतें भी धरें,
कुछ ऐसे दोस्त भी मेरी निगाह में हैं ‘क़तील’
कि मुझको बाज़ रखें जिससे ख़ुद उसी पे मरें..!!
~क़तील शिफ़ाई