दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
और दामन ए क़ातिल की हवा और तरह की,
दीवार पे लिखी हुई तहरीर है कुछ और
देती है ख़बर ख़ल्क़ ए ख़ुदा और तरह की,
किस दाम उठाएँगे ख़रीदार कि इस बार
बाज़ार में है जिंस ए वफ़ा और तरह की,
बस और कोई दिन कि ज़रा वक़्त ठहर जाए
सहराओं से आएगी सदा और तरह की,
हम कू ए मलामत से निकल आए तो हमको
रास आई न फिर आब ओ हवा और तरह की…!!
~इफ़्तिख़ार आरिफ़