इलाज़ ए शीशा ए दिल करूँ मिले…

इलाज़ ए शीशा ए दिल करूँ मिले जो शीशा गर कोई
कोई मिला नहीं इधर, मिलेगा क्या उधर कोई ?

डगर पे इश्क़ ए नामुराद की चला था बे खतर
घसीट, लूट ले चला मिला था चश्म ए तर कोई,

नवीद हो कि हम तुम्हारा शहर छोड़ जाएँगे
बसे थे जिस के हुक्म पर चला है रूठ कर कोई,

शिकस्ता दिल की धज्जियाँ समेट ले, गिला न कर
कि उस गली में मुन्तज़िर अब भी बाम पर कोई,

चले जो ऐतमाद से, रहे जो मुस्तक़िल मिजाज़
बनेगे हम भी इश्क़ में हवाला मोतबर कोई,

समझ ले हौसला तलब है खेल सारा इश्क़ का
बड़ा ख़सारा कर लिया, कहेगा तुझ को हर कोई,

निढाल कर न दे कहीं पे तेरी ख़ामोशी उसे
ख़ुद अपने हाथ से तू अपने सर पे दोश धर कोई,

क़याम क्या करे चमन में शाख़ ए गुल रही नहीं
हुई सलब ताक़तें, रहा न बाल ओ पर कोई..!!

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